ट्रेडिंग और इन्वेस्टमेंट सेक्टर में शेयर का प्रयोग बहुत ज्यादा होता है। लेकिन शेयर कैसे बनता है, इसके बारे में लोगों को स्पष्ट रूप से जानकारी नहीं है।
हालाँकि, शेयर का प्रयोग आम ज़िन्दगी में भी बहुत किया जाता है और जब भी नए लोग ट्रेड करते है तो उनके मन में सदा यह शंका रहती है की कैसे बने सफल प्रोफेशनल ट्रेडर ?
जैसे जब कोई कंपनी या फर्म अपनी कंपनी में पूँजी जुटाने के लिए अपनी कंपनी का Ownership को बेचता है तो उस हिस्से या अंश को हम शेयर कहते है।
जैसे किसी एक फर्म की कुल पूँजी ₹1 लाख है और फर्म अपनी कुल पूँजी को 100 हिस्सों में एक सामान बाँट दे तो कंपनी की पूँजी का बांटा गया प्रत्येक हिस्से को शेयर के रूप में दर्शाया जाता है।
ये तो बात शेयर की हो गयी है। अब शेयर कैसे बनता है, उसके बारे में बात करेंगे।
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कंपनी शेयर्स कैसे बनाती है?
आपको शेयर कैसे बनता है का उत्तर हमने संक्षिप में ऊपर भी दे दिया है। जब किसी कंपनी को पैसे की जरुरत होती है या अपने कंपनी में कोई नयी मशीनरी लगवाना की जरुरत हो तो कंपनी का मालिक अपनी कंपनी को पब्लिक (Public) कर देती है।
इसके लिए मालिक अपनी कंपनी को NSE और BSE में लिस्टेड करती है। जिसके बाद कंपनी आम लोगों के लिए Share Issue करती है और फिर आम लोग उन शेयर्स को खरीदते है और उसके बाद शेयर को बाद में ऊँचे मूल्य पर बेच कर मुनाफा कमाते है।
अब “व्हाईट प्राइवेट लिमिटेड” से कंपनी का नाम व्हाईट लिमिटेड हो जायेगा और कंपनी का मूल्यांकन (वैल्यूएशन ) किया जायेगा। मान कर चलते है की कंपनी की वैल्यू 100 रुपये है। और कंपनी को एक हजार रुपये की जरुरत है। अब कंपनी अपने हिस्से या हिस्सेदारी को कैसे बेचेगी? कंपनी का वैल्यूएशन 100 रुपये हुआ है तो कंपनी 1 रुपये का 1 शेयर बनाती है।
कंपनी की वैल्यू में से 1 रुपये वैल्यू पर मालिकाना हक़ जो भी इस (1 रुपये के हिस्से को) खरीदेगा उसका होगा। तो अगर आप इस 1 रुपये वैल्यू के शेयर को खरीदते है तो आप इस कंपनी के उतने हिस्से के मालिक (हिस्सेदार, शेयरहोल्डर) बन जायेंगे।
पर कंपनी को 1 रुपये का हिस्सा 1 रुपये में बेचकर किसी तरह का फायदा नहीं होगा। इसलिए कंपनी अपना एक शेयर (जिसकी वैल्यू 1 रुपये है) उसे 10 रुपये में बेचना चाहती है। ताकि 10 रुपये के हिसाब से जितने भी शेयर्स पब्लिक खरीदेगी प्रति शेयर 9 रुपये का निवेश कंपनी में आएगा। कंपनी का प्रमुख उद्द्येश्य निवेशकों से निवेश लेना ही है।
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सारांश
कंपनी की वैल्यू 100 रुपये है जिससे वो 100 शेयर्स बनाती है जिसका मतलब है 1 रुपये का 1 शेयर (इस एक रुपये को “फेस वैल्यू” कहते है)। अब यह शेयर निवेशक 10 रुपये में खरीदेंगे यहां 10 रुपये शेयर की कीमत है। तो जो भी व्यक्ति 10 रुपये का यह शेयर खरीदेगा उनका 9 रूपया इस कंपनी में निवेशित हुआ है। अब एक साल के बाद कंपनी की भी मुनाफा कमाएगी उसमें से हर निवेशक को कुछ मुनाफा देगी जिसे “डिविडंट” कहाँ जाता है।
तो चलिए किसी कंपनी का IPO देखा जाए।
सबसे पहले होते है करंट आईपीओ यानि जिन्हे आप अभी फ़िलहाल खरीद सकते है और दूसरे होते है अपकमिंग आईपीओ यानि आनेवाले कुछ दिनों / महीनों में उन्हें भी आप खरीद सकते है।
पहले देखते है अपकमिंग आईपीओ:
किसी भी कंपनी को जो शेयर मार्केट में आना चाहती है,उसे अपने बिज़नेस का शत प्रतिशत ब्यौरा सेबी को देना अनिवार्य है। जिसमें ये भी बताया जाता है की कितने शेयर किस कीमत से पब्लिक को ऑफर किया जाना है। सेबी शेयर मार्केट का रेग्युलेटर है यानि की हर चीज की निगरानी करने वाली संस्था। इस संस्था के पास कंपनी सारी जानकारी का क ड्राफ्ट में लिखकर सेबी को दे देती है। जिसे कहा जाता है “DRHP = DRAFT RED HERRING PROSPECTUS” अब गर सेबी इस ड्राफ्ट को मंजूरी देती है तो इस आईपीओ जल्दी आएगा और अगर सेबी रिजेक्ट कर देती है तो उस ड्राफ्ट में सुधार करने के बाद वह सुधारित DRHP फिर से सेबी को सौंपा जायेगा।
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