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February 4, 2025

क्या भारत एक मिडल इनकम ट्रैप में फंस कर रह जाएगा?

भारत के सामने इस समय जो सबसे बड़ा प्रश्न है कि क्या हम भी मिडल इनकम ट्रैप में फसते जा रहे हैं ? देखिए दुनिया में बहुत से ऐसे देश हैं जिन्होंने कोशिश की है कि वह मिडल इनकम कंट्री से निकलकर हाई इनकम कंट्री की तरफ जाएं ,लेकिन सिचुएशन कई बार ऐसी हो जाती है आप प्रोडक्टिव नहीं हो पाते ,आपकी जीडीपी ग्रोथ स्टैग्नेंट हो जाती है ,जिसके कारण आप लगातार मिडल इनकम ट्रैप में फसते जाते हैं और रिसेंटली इकोनामिक टाइम्स में एक बड़ा ही अच्छा आर्टिकल आया था इससे रिलेटेड।

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तो चलिए पहले यह देखते हैं कि एक्जेक्टली अभी हो क्या रहा है ? देखिए पिछले 15 साल से अगर आप देखोगे भारत के अंदर जो ऑर्डिनरी इंडियन की इनकम है ,जो एक मिडिल क्लास की इनकम है ,यह हम बात कर रहे है टॉप 15% से लेकर 50 परसेंट के पापुलेशन के बीच में। एक तरह से स्टैग्नेंट हो गई है ,वह कहीं ना कहीं बढ़ नहीं रही है। मतलब कि जो टॉप 15% है उनकी तो इनकम बढ़ रही है ,वह जो रिच है वह और रिच होते जा रहे हैं और जो बॉटम के 20% अगर आप देखोगे तो उनकी इनकम बढ़ इसलिए रही है क्योंकि सरकार उनको सब्सिडीज वगैरह कुछ दे रही है ,उनके खाते में डायरेक्टली कुछ पैसा भेज रही है ,तो उसकी वजह से थोड़ी बहुत इनकम जो है उनकी बड़ी है। लेकिन जो 50% से लेकर टॉप 15% है ,उनकी इनकम स्टैग्नेंट हो गई है। लगभग 120 मिलियन पीपल ऐसे हैं ,मतलब 12 करोड लोग ऐसे हैं ,18 वर्ष से 35 वर्ष के बीच में ना तो वह एजुकेटेड है और ना ही अपने आप को employed समझते हैं। अगर आप देखोगे यहां पर हाईएस्ट लेवल आपको एग्रीकल्चर के अंदर जो हमारी पापुलेशन है वह इस समय भी employed देखने को मिलेगी आप सोच कर देखिए हम बार-बार बात करते हैं मैन्युफैक्चरिंग की मेक इन इंडिया की यहां पर जो मैन्युफैक्चरिंग के अंदर जो employment पापुलेशन का भागीदारी है जीडीपी में ,वह आपको पिछले 30 इयर्स के अंदर लोएस्ट देखने को मिलेगा। यहां पर आप देख सकते हैं जो भारत के अंदर प्रोडक्शन है वह डिफॉल्ट मोड में चल रहा है ,मतलब कि यहां पर जो इनफॉरमल सेक्टर है वह अभी भी डोमिनेट करता है ,इन फैक्ट आप दिखते ही रहते होंगे कि भारत के जो पिछड़े राज्य हैं जहां बिहार की बात करें, उड़ीसा की बात करें ,उत्तर प्रदेश की बात करें ,वहां पर जो एक पर्सन अर्न करता है ,उससे ज्यादा एवरेज अगर आप देखिए तो हमारे जो पड़ोसी देश हैं बांग्लादेश ,नेपाली वह ज्यादा अर्न करते हैं और यह कहीं ना कहीं दिखाता है कि भारत में बहुत सारे इश्यूज चल रहे हैं और कहीं ना कहीं हम मिडल इनकम ट्रैप की तरफ फसते जा रहे हैं, उधर फॉल हो रहे हैं।

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मिडल इनकम ट्रैप होता क्या है ?

देखो एक ऐसा सिचुएशन होता है किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए ,जहां पर हमारी इकोनामिक ग्रोथ स्टैग्नेंट होती जाती है ,मतलब इकोनामिक ग्रोथ बढ़ने के बजाय एक स्टैग्नेंट हो गई है ,या फिर गिर रही है ,या फिर और भी अलग-अलग चीज हैं उसमें भी आपको कुछ वैसा ही देखने को मिलेगा जिसमें हम हाई इनकम स्टेटस की तरफ नहीं जा पा रहे हैं। और यहां पर आप देख सकते हो फॉर एग्जांपल जैसे हमारा इकोनामिक ग्रोथ ना हो रहा हो। यहां पर जो वेजेस है वह भी स्टैग्नेंट हो गई है ,लोगों की इनकम नई बढ़ रही है। जो इनफॉर्मल सेक्टर है वो अभी भी डोमिनेट कर रहा हो। फिर इसके आलावा यहा पर जो हमारे देश के अंदर लेबर इंटेंसिव गुड्स वगैरे इंटरनॅशनली कम्पीट नहीं कर पाते है। तो ये सारे एक तरह से कॅरक्टरिस्टिक होते है किसी भी मिडिल इनकम ट्रैप के कंट्री के लिए।

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कई लोग सोचते रहते होंगे की जीडीपी ग्रोथ आंकड़ा आता रहता है। आप देख सकते है 2020 ये कोविड का समय था ,जब हम निगेटिव में गए थे ,चलो कोई बात नहीं , फिर उसका इम्पैक्ट आया था जीडीपी ग्रोथ पर। कई लोग कहेंगे कि कोविड के पहले तो हम अच्छे होंगे लेकिन ऐसा भी नहीं है यहां पर आप देख सकते हो 2015-16 के बाद से लगातार हमारे जो इकोनोमी है वह नीचे ही जा रही थी। तो यह कहना कि कोविड की वजह से ऐसा कुछ हो गया है ऐसा बिल्कुल नहीं है ,कोविड के पहले ही आपको यह सिचुएशन देखने को मिलेगा और यह आंकड़ा हम नहीं बना रहे है ,यह खुद भारत सरकार ने दिया है। कोविड के जस्ट पहले आप देखिए 2019-20 का जो आंकड़ा है, 3. 9% इतना नीचे हम चले गए थे। मतलब हमारा इकोनामिक ग्रोथ स्टैग्नेंट हो गया है। फिर इसके अलावा यहां पर देखो क्या होता है , जीडीपी में जो सबसे बड़ा कंट्रीब्यूशन होता है C + I + G + N मतलब यहां पर जो प्राइवेट कंजप्शन है उसका सबसे बड़ा कंट्रीब्यूशन है ,मतलब लगभग 55 to 60% कंट्रीब्यूशन जीडीपी में प्राइवेट कंजप्शन का। मतलब हम सब लोग जो बाजार से सामान खरीदते हैं , तो यहां पर हुआ क्या है कि अभी भी जो एक्सपेंडिचर है कंजप्शन का ,वह आपको Pre pandemic लेवल से भी कम देखने को मिलेगा , मतलब हम उभर ही नहीं पाए हैं pandemic के बाद से। और इसीलिए आप देख सकते हैं यहां पर जो स्टाफ है बहुत सारे हमारे देश के अंदर वह बिक नहीं रहे हैं ,चाहे आप टू व्हीलर की सेल्स की बात करिए ,फोर व्हीलर गाड़ियों की सेल आप देख रहे हो आजकल क्या हो गई है ,एफएमसीजी गुड्स हो गया ,यहां पर हम स्मार्टफोंस की बात करे तो आईफोन छोड़ दो ,आईफोन का भी थोड़ा सा अलग क्रेज चल रहा है और वह क्या है जो थोड़ा सा रिच पीपल है वह लगातार अपडेट करते रहते हैं अपने आप को ,या फिर एक अलग ही शौक है वह उसकी बात छोड़ दो। लेकिन नॉर्मली अगर आप स्मार्टफोंस की बात करें तो उसमें भी कोई बहुत बढोतरी नहीं हो रही है ,मतलब आप रिच लोगोंको छोड़ दो ,गरीब जो बॉटम 20% है उनको छोड़ दीजिए ,बीच वाला जो एक मेजर चंक है भारत के अंदर वह कंज्यूम नहीं कर रहा है और इसीलिए लोग जो इनकम टैक्स देते हैं ना यह जो बड़ी संख्या इनकम टैक्स पेयर कि वह आप देखते होंगे सोशल मीडिया से लेकर हर जगह लगातार कंप्लेंट कर रहे हैं कि – उनके ऊपर बार-बार टैक्स का प्रेशर डाला जा रहा है। यहां पर पहली बार शायद ऐसा होगा आजादी के बाद से कि वह उनको ऐसा लगता है कि जो फ्यूचर में उनके बच्चे हैं उनकी स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं होने वाली तो यह सारी चीजे काफी प्रॉब्लमेटिक है। अब भारत के अंदर अगर आप देखोगे यह जो मैंने आपको बताया मिडल इनकम ट्रैक का जो इशू है वह आपको आगे जो हम तीन-चार इश्यूज बतायेंगे उससे आपको साफ-साफ झलकता हुआ देखने को मिलेगा। अभी कई लोग सोचते हैं कि स्टॉक मार्केट ने बहुत अच्छा परफॉर्म किया है पिछले कुछ समय में ,हां अभी थोड़ी गिरावट आई है करेक्शन है एक तरह का 10% का हाई से। लेकिन यहां पर मार्केट जो स्टॉक मार्केट की स्टोरी है ,कई लोग कहेंगे देखिए कितना ग्रो हो रहा है ,लेकिन आपको समझना है कि स्टॉक मार्केट हर एक चीज को रिफ्लेक्ट नहीं करता है।

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यहां पर जो स्ट्रक्चरल स्लो डाउन है इकोनॉमी के अंदर वह स्टॉक मार्केट रिफ्लेक्ट नहीं कर रहा है। आप देखिए इकोनामिक के अंदर इन्वेस्टमेंट बढ़ नहीं रहा है लेकिन यहां पर उल्टा जो स्टॉक मार्केट के अंदर कंपनी के शेयर प्राइस है वह लगातार बढ़ते जा रहे हैं और यह आपको समझ में आएगा प्राइस to अर्निंग रेशों से ,मतलब एक कंपनी अर्न कितना कर रही है उसके हिसाब से उसका शेयर प्राइस बढ़ना चाहिए ना ? नहीं ,यहां पर उल्टा हो क्या रहा है कि शेयर प्राइस to अर्निंग रेशन आपको काफी ज्यादा देखने को मिलेगा। यह आप देख सकते हो जो सेंसेक्स के अंदर टॉप 30 कंपनी होती हैं ,उनके यहां पर एवरेज आप देख पाओगे की प्राइस to अर्निंग रेशों क्या है और आप देख सकते हैं लगातार यहां पर स्पेशली 2021-22 में तो यह बहुत ज्यादा चला गया था 29 इट इस वेरी हाई और अभी भी आप दिखे तो 24 -25 अभी रिसेंटली जो थोड़ा मार्केट करेक्शन हुआ उसमें प्राइस to अर्निंग रेशों थोड़ा बहुत सुधरा है लेकिन अभी भी बहुत ज्यादा हाई है। मतलब आप सेंसेक्स और निफ्टी को देखकर यह मत कहिए कि भारत की स्थिति अच्छी है। फिर इसके अलावा यहां पर क्या है कि मिडल इनकम कंट्री मतलब मिडिल क्लास लोगों के लिए अगर हमारे देश में चीजों का मैन्युफैक्चरिंग नहीं होगा तो यह दर्शाता है कि हम किस स्थिति में है। प्रॉब्लम क्या हो रहा है कि जो रिच पीपल है उनके जो वोट्स है उनको तो हम बना लेते हैं ,भारत के अंदर कुछ सिलेक्टेड लोगों के लिए जिनके पास अच्छा पैसा है ,जो बड़े-बड़े घर है ,आजकल गुड़गांव वगैरह में अक्सर आप देखते होंगे खबरें आती हैं – कि 5 6 करोड़ के घर तो चुटकियों में बिक गए कुछ ही घंटे के अंदर अंदर यहां पर वह सोल्ड आउट हो गए। तो वह आपको रिच पीपल की स्टोरी देखने को मिल रही है उनके लिए लैंड अवेलेबल है ,कैपिटल अवेलेबल है ,लेकिन जो एक बड़ा चंक है हमारे देश के अंदर मिडिल क्लास ,यहां पर जीसके लिए हम प्रोडक्शन करना चाहिए देश के अंदर ,उल्टा पता है आप क्या कर रहे हैं ,हम क्या करते हैं उनको इंपोर्ट करते हैं ,कोई शर्ट चाहिए हमें ,पेंट चाहिए तो ज्यादातर चीज क्या हो रही है हम भारत के अंदर मैन्युफैक्चर करने के बजाय उसको इंपोर्ट कर रहे हैं और हमें क्या देखना चाहिए आज के समय को हमारा फोकस होना चाहिए कि यहां पर ज्यादा से ज्यादा मैन्युफैक्चरिंग हो मिडिल क्लास के प्रोडक्ट के लिए ,लेकिन उल्टा वह सारी चीज हम बाहर से इंपोर्ट कर रहे हैं और रिच पीपल वाले जो प्रोडक्ट है उसको हम भारत में बना रहे हैं और इसी की वजह से भारत इस समय लो लेवल का प्रोडक्टिविटी सफर कर रहे है। जब तक हम ज्यादा प्रोडक्टिविटी पर फोकस नहीं करेंगे ,तब तक हम ग्रो ही नहीं कर पाएंगे और कहीं ना कहीं यहां पर जो आर्टिकल था कि कैसे जो इकोनामी है वह मुगल अंपायर के समय को दर्शाती है – कि कुछ सिलेक्टेड लोगों के लिए तो अच्छा बन जाता है लेकिन जो एक मास मार्केट का डिमांड है ,जो एक ऑर्डिनरी इंडियन का डिमांड है ,वह लो प्रोडक्टिविटी से सफर कर रहा है ,उनके चीजों को हम नहीं बना पा रहे हैं।

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फिर यहां पर जो नेक्स्ट एक बड़ी समस्या है वह हमारे देश के अंदर अभी भी इनफॉर्मल जो सेक्टर है ,इनफॉर्मल इकोनामी है ,वह पर्सिस कर रही है वह कम नहीं हो रही है। हम फार्मूलाईज स्ट्रक्चर में नहीं जा रहे हैं। आपको याद होगा डिमॉनेटाइजेशन लगाया गया ,जीएसटी लाया गया ,बोला यह जा रहा था कि फॉर्मलाइजेशन ज्यादा होगा लेकिन अभी भी हम कहीं ना कहीं चीजे फंसे हुए है ,देखो क्या होता है कोई भी प्रॉस्परस इकोनामी जो तरक्की कर रहा है कोई भी देश ,तो वह आपका लो क्वालिटी प्रोडक्ट्स जो की इनफॉरमल सेक्टर में बनाया जाता है वहां से शिफ्ट होकर बेटर क्वालिटी प्रोडक्ट की तरफ जाता है जो की फॉर्मल सेक्टर के अंदर बनाया जाता है। लेकिन भारत के अंदर यहां पर चाहे आप कितने भी रिचेस्ट ज्योग्राफी में चले जाएं , चाहे आप गुड़गांव चले जाएं ,बेंगलुरु चल जाए ,मुंबई चले जाए ,हर जगह आपको कहीं ना कहीं इनफॉर्मल शॉप्स जो है वहीं पर देखने को मिलेंगे। चाय आपको लेना है ,बिस्किट लेना है ,तो वह इनफॉर्मल तरीके से ही यहां पर अभी भी चल रहा है। तो यह अभी देश का हालत है। यही प्रॉब्लम हुआ था दुनिया के कुछ देश में जैसे ब्राज़ील हो गया ,थाईलैंड हो गया ,यह लोग मिडिल इनकम ट्रैप में फंसे रहे गए और वहीं कुछ देश जैसे साउथ कोरिया ,चायना ,ये लोग अपना मिडिल इनकम से हायर इनकम की तरफ एंटर कर चुके है।

लास्ट में यहां पर एक और जो इंपॉर्टेंट चीज है जिसके ऊपर फोकस रखना चाहिए आपको भारत क्यों मिडल इनकम ट्रैप में फस रहा है? क्योकि ए प्रोडक्टिव इकोनामी हम नहीं बना रहे हैं। मेन एक्टिविटी अगर आप देखोगे 1991 से लेकर यहां पर हम प्रोडक्शन की तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं ,कंपनसेशन की तरफ ध्यान दे रहे हैं। देखो इसका मतलब क्या है? मतलब यह है कि सरकार रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर फोकस नहीं कर पा रही है ,वह यहां पर और प्रोडक्शन कैसे बढ़ाया जाए देश में ,मैन्यूफैक्चरिंग कैसे बढ़ाया जाए ,उस पर फोकस नहीं कर पा रही है। क्यों? क्योंकि उसको सब्सिडीज देना है। जो गरीब व्यक्ति है ,जो एक मिडिल क्लास है ,उनको उनके बिना सब्सिडीज के काम ही नहीं चल पाएगा , उनकी इतनी इनकम है ही नहीं की बिना फूड में ,ट्रांसपोर्टेशन में ,हाउसिंग में ,एसेंशियल चीजों में जब तक सरकार सब्सिडी नहीं देगी वह काम नहीं कर पाएंगे और जब सरकार का पूरा का पूरा सब्सिडी जो है इधर शिफ्ट हो जाएगा तो वह कैसे यहां पर बाकी जो प्रोडक्टिव वाली चीज हैं उसके ऊपर फोकस कर पाएंगे। तो यह जितनी भी चीज हमने आपको बताया है यहां पर अभी तक , यह एक failed मिडल इनकम कंट्री को दर्शाता है। कहीं ना कहीं भारत को बहुत कुछ सीखना है ,बहुत कुछ करना बाकी है और लेट सी यहां पर जो पॉलिसी मेकर्स वगैरा है क्या कुछ कर पाते हैं? क्या हम इसे बाहर निकाल पाते हैं कि नहीं ? या फिर भारत भी एक मिडल इनकम ट्रैप में फंस कर रह जाएगा?

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